
2024-01-22T06:25:17
त्रेता के बाद एक बार फिर रामावतार हो रहा है यह...!!! यह केवल प्राणप्रतिष्ठा नहीं है, अन्य बहुत कुछ भी प्रतिष्ठित होने जा रहा है.! भारतकी प्रतिष्ठा, भारत के प्राण की प्रतिष्ठा, धर्म की प्रतिष्ठा और धर्म के मर्म की प्रतिष्ठा...!!! मनुष्यता की प्रतिष्ठा, शील की प्रतिष्ठा, चरित्र की प्रतिष्ठा और व्यवहार के व्याकरण की प्रतिष्ठा.! यह रामत्व, शिवत्व और ईशत्व का प्रस्फुटन है.! शश्वत सनातन धर्म के सनातन मूल्यों के आदर्श भगवान राम, भगवती सीता और उनके दिव्य राम दरबार के प्रत्येक दिव्य पात्र के द्वारा सम्पूर्ण मानव जाति के लिए ग्राह्य निर्दिष्ट पथ का पथ प्रदर्शन है.! आज जब कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, छल, कपट, मद, मत्सर और लिप्सा आदि कुत्सित भाव अधिकांश परिवारों को अपने चंगुल में कसते जा रहे हैं। ऐसे में पति कैसा हो, पत्नी कैसी हो, भाई कैसा हो, सास कैसी हो, ससुर कैसा हो, कुलवधू कैसी हो, देवर कैसा हो, भाभी कैसी हो, गुरु कैसा हो, मित्र कैसा हो, प्रजा कैसी हो, राजा कैसा हो तथा अनिर्णय, दुविधा और धर्मसंकट के क्षणों में हम किस रास्ते पर चलें। यदि इन सबका कोई जीवंत समाधान है, तो वह रामायण है.! निजी स्वतंत्रता के नाम पर निर्लज्जता, पशुता एवं अमानुषिक व्यवहार के इस युग में प्रगतिशीलता और आधुनिकता के नाम पर सारी मर्यादाओं को तार-तार कर देने पर उतारू वर्तमान समाज में मर्यादा का मार्तंड, सभ्यता का सुमेरु और संस्कृति का साकेत यदि कोई है, तो बस रामायण ही है जिसका पूर्ण परिपाक श्री राम चरित मानस में हुआ है। यह ग्रंथ तो ज्ञान, कर्म और भक्ति की त्रिवेणी है, जहां प्रतिदिन अध्यात्म का कुम्भ लगता है.! काव्यशिल्प और भाव-वैभव से सम्पन्न, यह ग्रंथ तो रत्नजड़ित मुद्रिकायुक्त उस उंगली की तरह है, जो मार्गदर्शन के लिए उठी है.! हम कितना चल पाते हैं या लक्ष्य के कितना निकट पहुंच पाते हैं, यह तो एक सापेक्षिक विषय है। लेकिन हम सही दिशा की ओर सही मार्ग पर ही चल रहे हैं, यही मूल बात है। रामायण या श्रीरामचरित मानस हमें यही दिशा और यही मार्ग बताता है.! श्रीराम का जीवन इसी दिग्दर्शन का सर्वकालीन और सनातन संविधान है। राम सब के हैं.! ऋषि-मुनियों से लेकर केवट और शबरी के भी हैं। सती अनुसूया से लेकर शापित अहल्या के भी हैं। कौशल्या से लेकर कैकेयी के भी हैं। वे अयोध्या के हैं, तो जनकपुर के भी हैं। अयोध्या और जनकपुर के हैं, तो दंडकारण्य, किष्किंधा और लंका के भी हैं। मनुष्य तो मनुष्य वे पशु, पक्षी और गिलहरी के भी हैं। वे इस जड़-चेतन जगत सबके हैं और सब में हैं। परन्तु वे जाति, शिक्षा, धन, पद, रूप और बल के आधार पर किसी से संबंध नहीं जोड़ते, उनके ध्रुव, दिव्य और अलौकिक संबंध का आधार तो केवल और केवल भक्ति और निर्मल मन का प्रेम ही है.! भला कौन है, जो राम जैसा पुत्र, राम जैसा भाई, राम जैसा मित्र, पति और राम जैसा राजा या शासक नहीं चाहेगा.!? हो भी क्यों न, देवी सीता पत्नीत्व और नारीत्व की पराकाष्ठा और आदर्श हैं.! भारत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न भ्रातृत्व के हिमालय हैं.! हनुमान जी भक्त और भक्ति की अंतिम सीमा हैं और प्रभु राम जगत की आत्मा हैं.! आज सत्ता और पद के लिए किसी भी स्तर तक गिर जानेवाले लोगों को राम जी और भरत जी तथा अन्य भाइयों का उदात्त चरित्र देखना चाहिए, कि कैसे इनके लिए सत्ता कोई भी महत्व रखती ही नहीं है। 22 जनवरी 2024 का दिन अपने अतीत को भूल, अपने पूर्व के क्रियाकलापों को भूल अपने जीवन में भी राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सीता, उर्मिला, मांडवी, श्रुतकीर्ति, केवट, अनुसूया, हनुमान, जटायु, विभीषण, त्रिजटा आदि के महान चरित्र को समाविष्ट करने का दिन है.! आज का दिन संकल्प लेने का है कि हमारे जीवन में, आचार-विचार और व्यवहार में रामायण रहे ! अदालतों में जमीन, खेत, मकान के झगड़ों से लेकर तलाक के निरंतर बढ़ते जा रहे मुकद्दमों और समाज में बढ़ते जा रहे, वृद्धाश्रमों के पीछे का कारण बस एक ही है, कि हमारे जीवन में राम, सीता और भरत, लक्ष्मण नहीं रह गये.! अनैतिक संबंधों, लिव इन रिलेशन, नशाखोरी, चोरी, लूट, हड़प, अपहरण, हत्या, बलात्कार, भ्रष्टाचार आदि महामारी की तरह इसीलिए फैलते जा रहे हैं। क्योंकि हमारे आइकॉन या मेंटर या हीरो या हीरोइन सीता नहीं शूर्पणखा होती गयी। वसिष्ठ नहीं कालनेमी होते गये। हमारे मित्र सुग्रीव नहीं, बाली और मंथरा होती गई, तथा हम राम की अयोध्या को भूलकर रावण की स्वर्णनगरी की चकाचौंध में फंसते चले गए हैं। आइए, जितना भी संभव हो, आज के दिन से हम अपने जीवन में रामत्व और रामायण को उतारें। आज का दिन अपने जीवन में धर्म, शील, मर्यादा एवं भक्ति के पुनरागमन और पुनर्प्रतिष्ठित होने का है, सो आइए इस पावन घड़ी का उत्सव मनाएँ तथा इस ऐतिहासिक वेला पर एकबार फिर दिवाली मनाएँ...!!! जय सियाराम 🙏 दिव्य भारत
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